Wednesday, October 28, 2009
शिवशंकर संहार करो.
खोल कर नयन तीसरे
तांडव करो शंकर भोले
संहार करो, संहार करो
संहार करो उपकार करो..
सजल सजल उन दो आँखों में
केवल कमल नहीं खिलते
कोयल से काले चेहरे को
क्योंकर गज़ल नहीं कहते
चाँद निरंतर घट जाता है
और अमावस कहलाता है
घर भर में बटती है रोटी
उसके हिस्से रोज अमावस
जिन सपनों का कोई सच नहीं
वे सपने चंदा मामा हैं
अपनी बोटी रोज बेच कर
वो जीता, ये क्या ड्रामा है
तुम्हे चिढाता है,मिश्री के
दो दाने वह रोज चढा कर
मैं भूखा, तुम आहार करो..
संहार करो, उपकार करो..
खून चूसता है परजीवी
फिर भी महलों में रहता है
और पसीने के मोती के
घर गंदा नाला बहता है
जिन्दा लाशों की बस्ती में
सपनों से दो उसके बच्चे
टॉफी गंदी, दूध बुरा है
ये जुमले हैं कितने सच्चे
चंदामामा के पन्नों में
चौपाटी पर चने बेचते
बच्चे होते हैं प्यारे
पर क्या बचपन भी होते प्यारे?
बहुत चमकती उन आँखों के
छुई-मुई जैसे सपनों पर
शिवशंकर, अंगार धरो..
संहार करो, उपकार करो..
भांति-भांति के हिजडे देखो
कुछ खाकी में, कुछ खादी में
थोडा गोश्त, बहुत ड्रैकुले
इस कागज की आजादी में
कुछ तेरा भी, कुछ मेरा भी
हिस्सा है इस बरबादी में
हाँ नाखून हमारे भी हैं
भारत माँ नोची जाती में
जो भी अंबर से घबराया
हर बारिश में ओले खाया
जब पानी नें आँख उठाई
सूरज मेघों में था भाई
लेकिन मुर्दों में अंगडाई
बर्फ ध्रुवों की क्या गल पाई?
तुम चिरनिद्रा से प्यार करो..
संहार करो, उपकार करो..
सूरज की आँखों में आँखें
डालोगे, वह जल जायेगा
पर्बत को दाँतों से खींचो
देखोगे वह चल जायेगा
कुछ लोगों की ही मुठ्ठी में
तेरा हक क्योंकर घुटता है
जिसनें मन बारूद किया हो
क्या जमीर उसका लुटता है?
हाँथों में कुछ हाँथ थाम कर
छोटे बच्चो बढ कर देखो
चक्रवात को हटना होगा
बौनी आशा लड कर देखो
इंकलाब का नारा ले कर
झंडा सबसे प्यारा ले कर
हर पर्बत अधिकार करो..
संहार करो, उपकार करो..
रवि राणा डीहर(टिल्लू)
Article source: http://shivbhakt.blogspot.com/2009/01/blog-post_02.html
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